कपास की गुणवत्ता पर ध्यान देना क्यों है जरूरी, कृषि वैज्ञानिकों ने ये दी सलाह
केंद्रीय कपास प्रौद्योगिक अनुसंधान व केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान ने लगाया जागरूकता शिविर
हरियाणा के सिरसा में स्थित केंद्रीय कपास प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान व केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान द्वारा संयुक्त जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन गांव खेड़ी व रायपुर में किया गया।
इस कार्यक्रम के दौरान सिरकाट की क्षेत्रीय इकाई के अध्यक्ष डा. हामिद हसन ने स्वच्छ कपास चुनने के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला।
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उन्होंने बताया कि उत्तर भारत में कपास की कचरे की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। इसलिए किसानों को मंडी में कम काम मिलता है। उन्होंने किसानों को कपास के खेत में ले जाकर स्वच्छ कपास चुगाई का प्रदर्शन करते हुए प्रशिक्षण दिया।
डा. वी जी अरुडे, प्रधान वैज्ञानिक, सिरकाट मुम्बई ने कपास की गुणवत्त्ता को बनाये रखने के लिए विस्तृत जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि वाहन में कपास भरने से पहले उसे ठीक से साफ करें। परिवहन से पहले चुनी हुई कपास को सूती कपड़े की थैलियों में भरें। वाहन में कपास भरते समय अपरिपक्व और क्षतिग्रस्त बोंडी को अलग कर दो।
जब भी सूती कपड़े के थैले उपलब्ध न हों तो वाहन में रखे रुई को चारों तरफ से सूती कपड़े या कैनवास से ढक दें। खेत से किसान के घर तक कपास ले जाते समय विभिन्न किस्म के कपास को अलग रखें। कपास भंडारण का स्थान साफ और सूखा रखें।
उन्होंने बताया कि एक किलोग्राम सूखे कपास के डंठल से लगभग 300 ग्राम ताजा ऑयस्टर मशरूम उत्पादित किया जा सकता है। 3-4 सेमी लंबे गर्म पानी से उपचारित कपास के डंठल पर ऑयस्टर मशरूम खेती की जा सकती है।
एक किलोग्राम ताजा ऑयस्टर मशरूम के उत्पादन की औसत लागत रुपए 50 प्रति किलोग्राम और बिक्री मूल्य रुपए 80 से 150 प्रति किलोग्राम है।
इस प्रकार, किसान एक किलोग्राम मशरूम से न्यूनतम 30 रुपये कमा सकते हैं। इस प्रकार एक एकड़ भूमि से उत्पादित कपास के डंठलों पर ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन करके किसान औसतन 6 हजार अतिरिक्त आय अर्जित कर सकता है।
इस अवसर पर वरिष्ठ वैज्ञानिक सीआईसीआर डा. अमरप्रीत सिंह ने किसानों को गुलाबी सूंडी व निमेटोड से बचाव व रोकथाम के विभिन्न उपायों बारे विस्तृत जानकारी दी।