YOUTH : मनुष्य जीवन में 40, 50 और 60 की उम्र में क्या करे - Choptapress.com

YOUTH : मनुष्य जीवन में 40, 50 और 60 की उम्र में क्या करे

# KYA KRE
Spread the love

मनुष्य जीवन में 40, 50 और 60 की उम्र में क्या करे, ये जानना ही मनुष्य का ही कर्तव्य नहीं बल्कि युवा पीढ़ी भी जाने, साथियों जीवन बहुत ही आनन्द दायक काल है

देश के प्रिय नागरिकों, आज एक ऐसे विषय में बात कर रहे हैं, जो जीवन में बहुत ही जरूरी है। आज एक ऐसा विचार आया जो मनुष्य के जीवन में विभिन्न आयु वर्ग के आयामों से संबंधित है।

हमारे प्रिय मित्र है डॉक्टर रवि गुप्ता जी, उन्होंने ये प्रश्न किया है कि मनुष्य, अपने जीवन के विभिन्न आयु के पड़ावों में क्या करे?, प्रश्न इतना सुंदर है आज मेरा मन हुआ कि इस विषय को लेकर कुछ चर्चा की जाए, विषय वैसे भी बहुत रुचिकर है और ज्ञानवर्धक भी है, अब क्यों कि बात तीन स्तर की आयु वर्ग की हो रही है तो मैं इसे थोड़ा सा विस्तारण देना चाहता हूं और थोड़ा नीचे से शुरू करना चाहता हूं।

ये संघर्ष में बदल जाता है

साथियों जीवन बहुत ही आनन्द दायक काल है अगर इसकी लीला समझ में आ जाए और अगर समझ नहीं आया तो ये संघर्ष में बदल जाता है या फिर और भी तलहटी में पहुंच कर नरक समान भी बन जाता है इसी लिए तो महापुरुषों ने कहा है कि जीवन में होश और सजगता की आवश्यकता है, अगर आप होश में हो तो जीवन स्वर्ग और अगर जीवन में मूर्छा है तो जीवन नरक हो जायेगा। इसी तरह ध्यान है तो पुण्य और अगर मूर्छा है तो पाप, ये जीवन जीने के सिद्धांत हैं।

मनुष्य जीवन में सबसे महत्वपूर्ण काल होता है विद्यार्थी जीवन या हम इसे ब्रह्मचर्य काल भी कह सकते है वहीं काल सबसे महत्वपूर्ण अर्थात होंशपूर्ण जीने की आयु वर्ग है। इस काल में हमे अपने सम्पूर्ण जीवन में काम आने वाले गुणों को विकसित करना पड़ता हैं।

इसी ब्रह्मचर्य काल में हमें शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक, शैक्षिक, कुशलता, निर्णय लेना, भावनात्मक स्थिरता, सामाजिक, एवम् राष्ट्रभक्ति सीखने के अवसर प्राप्त होते है , हां वैसे तो हर व्यक्ति जीवन भर सीखता ही है

परंतु जो शिक्षण ब्रह्मचर्य काल या विद्यार्थी काल में होता है उसका कोई तोड़ नही है। इस आयु वर्ग यानी इंसान की 25 वर्ष तक की आयु में ही सीखने का पूरा समय मिलता है तथा अपनी कुशलता को पूरे जीवन के लिए तैयार किया जाता है।

क्यों कि हमे स्वंय को भी सशक्त करना है, मन और मस्तिष्क को भी उस स्तर का बनाना है, भावना को भी स्थिर करना सीखना है, समाज में कैसे रहना है और समाज को कैसे सहयोग करना है, परिवार को कैसे जानना है तथा कैसे साथ रहना है ये भी सीखना है

परिवार का मतलब क्या है ये जानना है, राष्ट्र भक्ति को सीखना है, राष्ट्रभक्ति को जीना सीखना हैं और राष्ट्र के लिए सोचना सीखना है, राष्ट्रीय गतिविधियों के लिए समय निकालना सीखना है

राष्ट्र को सम्पूर्ण देना सीखना हैं, इस आयु में ही हर इंसान को अपना करियर बनाना है, जीविका चलाना सीखना, त्याग, बलिदान करना सीखना है। इसी आयु में स्वार्थ से ऊपर जाने की कला  सीखनी है तथा परोपकार की भावना जगानी है।

इससे आगे स्वार्थ से परमार्थ, परमार्थ से समाजार्थ, उससे आगे राष्ट्रार्थ को समर्पित होना सीखना है, इसलिए मैं बार बार यही कहता हूं कि सबसे ज्यादा सचेतन का काल ब्रह्मचर्य या विद्यार्थी काल है। अब मैं जो प्रश्न किया गया है उस पर आता हूं , दोस्तो जीवन में जो मनुष्य 40 वर्ष के है उन्हे अपने पारिवारिक जरूरतों को पूरा करना चाहिए

और उस के लिए मेहनत करनी चाहिए, जब एक मानुष पूरे जीवन में काम आने वाली हर स्किल में निपुण  अपने विद्यार्थी काल में हो गया तो फिर जो स्किल जिस आयु के लिए है उसे उस समय पर प्रयोग कर दे, तो जीवन अर्थपूर्ण तथा जीवन आनंदमय हो जायेगा। 40 की उम्र गृहस्थ की है और उसी में संपूर्णता के साथ कार्य करे

जो उन्हें कर्तव्य मिले है उसे पूर्ण करे, परिवार्थ काम करे और अपने बच्चो को राष्ट्र की जरूरतों को पूर्ण करने लायक बनाए , ये सभी इंसानों के कर्तव्य है जो 40 की आयु वर्ग में है।

समाज को प्रथम स्थान देने का संकल्प करे

दूसरा आयु वर्ग जिस के बारे पूछा गया है वो 50 का है इसमें घर में रहते हुए सामाजिक गतिविधियों के लिए समय निकालें तथा अर्थ की भी व्यवस्था करने का मन तैयार करें। जब भी समाज को आपकी जरूरत हो आप अपनी सभी व्यस्तता को त्याग कर, समाज को प्रथम स्थान देने का संकल्प करे।

तन से मन से और धन से भी तैयार रहे समाज के लिए। तत्पश्चात 60 की आयु का जिक्र होता हैं साथियों ये बहुत ही महत्वपूर्ण वर्ग है ,वैसे तो अगर हम इसे अपनी आश्रम व्यवस्था के आधार पर देखे तो 50 से ऊपर की आयु वानप्रस्थ की होती है

और 75 वर्ष की आयु से ऊपर का जीवन सन्यास का होता यानी कि जब हमारा जीवन 100 वर्ष का होता था  लेकिन क्यों कि अब हमारी आयु सौ वर्ष की आमतौर पर नही होती है और आमतौर औसत रूप में 80 वर्ष की होती है। इस लिए इसे थोड़ा अलग तरह से विभाजित किया है यानी 25 वर्ष ब्रह्मचर्य, 50 तक गृहस्थ और 65 तक वानप्रस्थ तथा  अब 65  साल की आयु के ऊपर राष्ट्र सर्वोपरि।

ऊपर सिर्फ राष्ट्रहित के लिए जीवन न्यौछावर हो

या फिर आप ऐसे भी कह सकते है कि 25 तक ब्रह्मचर्य सहित विद्यार्थी, दूसरा 25 से 50 वर्ष गृहस्थ, तीसरा 50 से 65 गृहस्थ के साथ समाज को, 65 से ऊपर सिर्फ राष्ट्रहित के लिए जीवन न्यौछावर हो । 65 से ऊपर  हर इंसान को गृहस्थ की सोच से ऊपर उठ जाना चाहिए, यहां गृहस्थ का अर्थ समझना बेहद आवश्यक है

गृहस्थ मतलब सभी प्रकार की व्यक्तिकता से ऊपर उठ जाना, यानी आप का ध्यान  किसी एक घर, किसी एक संस्था, किसी एक पार्टी , किसी एक पंथ , किसी एक मठ, किसी एक आश्रम, किसी एक स्कूल, किसी एक परिवार, किसी एक विचार, किसी एक विचारधारा से और किसी एक एजेंडे से ऊपर उठना जरूरी है

अगर कोई सोचें की घर में रहना ही गृहस्थ है तो वो भूल कर रहे है, घर के अलावा सारे घर जो खुद के अनुसार बनाए है वो सभी घर की श्रेणी में आते हैं।

यही सच्ची राष्ट्र भक्ति है

इसलिए मेरा निवेदन यह है कि इस आयु के बाद व्यक्ति सिर्फ राष्ट्र के बारे में सोचें ,वो वही बोले जो राष्ट्र के लिए अच्छा है, वो वही करे जो राष्ट्र के लिए हितकर हो, वो वही परिणाम के लिए जीए जो राष्ट्र हित में हो। इस आयु वर्ग के लोग राष्ट्र हित में ही सम्पूर्ण जीवन को न्यौछवर करे, यही सच्ची राष्ट्र भक्ति है, राष्ट्र भक्ति कभी खंडित नहीं हो सकती है

राष्ट्र भक्ति कभी बंटी हुई नही हो सकती, अगर आपने राष्ट्र हित से इतर किसी अन्य संस्था का हित भी मन में रखा है तो वो खंडित राष्ट्र भक्ति होगी। 60 वर्ष की आयु के बाद तुम्हारे जीवन यापन के अलावा कोई लक्ष्य राष्ट हित से ऊपर न हो, वही जीवन धन्य होगा , वही जीवन राष्ट्र को समर्पित होगा।

इसलिए जो प्रश्न मेरे सामने आया और हमारे प्रिय मित्र ने पूछा , उसका ध्यान करते हुए मैने अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही इसका विस्तार करने की कोशिश की है। हम ने गृहस्थ की परिभाषा अपने अनुसार गढ़ ली है, जो घर में रहे वो गृहस्थ, तथा जो घर से अलग रहे वो गृहस्थ नही, अरे ये नही चलेगा।

सब घर की श्रेणी में आते है

जिसने भी अपने विचारो के अनुसार एक चारदीवारी तैयार की है वो सब घर की श्रेणी में आते है चाहे वो घर हो, चाहे वो  मठ हो, चाहे वो आश्रम हो, चाहे वो संस्था हो, चाहे वो संस्थान हो, चाहे वो कोई पार्टी हो, चाहे वो कोई पंथ हो, सभी एक विशेष उद्देश्य तथा विचारधारा में संचालित होते है,

तो वो सब गृहस्थ से ऊपर नहीं है और न ही उससे जुड़े व्यक्ति कभी उससे ऊपर सोच सकते है तो  फिर उनमें राष्ट्रभक्ति कैसे उत्पन्न हो सकती है। जीवन की धारा बहुत ही स्पष्ट धारा है,

राष्ट्र बहुत बड़ी और अखंड विचारधारा का नाम है इसलिए सभी से मेरा निवेदन है कि अगर वो 65 से ऊपर है तो अखंड रूप से अपना कर्म राष्ट्र को समर्पित करे। और अपना जीवन सिर्फ राष्ट्रहित में हो।

 

 

 

MAHINDRA : जानिए क्या खास होगा नई महिंद्रा स्कॉर्पियो पिकअप एन में

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *