नरेंद्र यादव : युवाओं को अगर पांच किलोमीटर तक जाना है तो प्लीज साईकल से जाने में शर्म न करे युवा - Choptapress.com

नरेंद्र यादव : युवाओं को अगर पांच किलोमीटर तक जाना है तो प्लीज साईकल से जाने में शर्म न करे युवा

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नरेंद्र यादव] राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता : युवाओं को अगर पांच किलोमीटर तक जाना है तो प्लीज साईकल से जाने में शर्म न करे युवा, पैदल चलने में गर्व समझते है और गौरव की बात होनी भी चाहिए

नेहरू युवा केंद्र हिसार के उपनिदेशक डा. नरेंद्र यादव बताते हैं कि आज अगर पर्यावरण को बचाने की बात चलती है तो गाड़ियों के धुआं की बात या पराली जलने की बात, हर किसी के जहन में आती है। कभी भी हम अपनी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते, क्यों कि हर कोई दूसरे को दोषी ठहराने में लगा हुआ है। मैं समाज मे या सड़को पर उन लोगो को भी देखता हूं कि वो अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए साईकल से चलते है या पैदल चलने में गर्व समंझते है और गौरव की बात होनी भी चाहिए लेकिन हमारा ट्रैफिक मैनेजमेंट ऐसा है कि कोई पैदल चलने वाला हो या साईकल से चलने वाला हो , उसको सड़क पर चलने के लिए जगह ही नही दी जाती और उनको ऐसी हेय दृष्टि से देखा जाता है जैसे वो कोई अपराध कर रहे हो।

ट्रैफिक नियमों का पालन भी नहीं करे
हम उन लोगो को ज्यादा अच्छा मानते है जो अगर एक किलोमीटर भी जाना हो तो कार से जाएंगे और जिसे 50 मीटर भी जाना हो तो बाइक से ही जायेंगे। न तो वो हेलमेट पहनते है और ना वो ट्रैफिक रूल फॉलो करते है। हमारे समाज मे जो अपनी जिम्मेदारी से कार्य करते है उन्हें मूर्ख समंझ कर लोग उसे किनारे कर देते है। कोई शहर में या बाजार में पैदल चलना चाहे तो, उन्हें कोई चलने का रास्ता ही नही देते।

अगर कोई साईकल पर चलता है तो उसके सामने भी ऑटो वाले, बस वाले, कार वाले ऐसे आगे आकर रोकते है जैसे वो कोई गुनाह कर रहा हो। उसे साइड में खड़ा होना पड़ता। हमारे यहां चौराहों पर भी जो ज़ेबरा क्रोसिंग बनी होती है उन पर भी गाड़ियां खड़ी कर दी जाती है, लोग जो पैदल है उन्हें निकलने की भी रास्ते नही देते । अगर किसी को बाजार में रोड पार करना हो तो ट्रैफिक इतने भारी मात्रा में चलते है कि कोई भी अपनी गाड़ी नही रोकना चाहता। यहां पर लोगो मे नागरिकता ज्ञान की कमी है।

पैदल चलने वालों को मिले इज्जत
हमें उन लोगो को इज्जत देनी चाहिए जो पैदल चलते है, जो साईकल पर चलते है। और पैदल यात्रियों के लिए विशेष व्यवस्था करने की आवश्यकता भी  है । बाजार में तो दुकानदार भाइयों ने पटरी पर भी कब्जा किया हुआ है पैदल के लिए जो पटरी बनाई जाती है वो तो सामान को सजाने के लिए प्रयोग की जाती है। एक शब्द है समृद्ध बनना, हमारे यहां उसका मतलब सिर्फ पैसे से होता है जब कि उसका अर्थ होता है कि हम अपनी आदतों को भी सुधारे, हम अपने व्यवहार का भी उत्थान करे, हम अपने पर्यावरण का भी ध्यान रखे , हम अपने जल का भी संरक्षण करे, हम अपनी बहन बेटियों को भी सुरक्षा दे।

तभी हम समृद्ध नागरिक कहला सकते है सिर्फ पैसा होना ही समृद्धि नही है वो सिर्फ धनी होना है। हमे बाजारों में , सड़को पर पैदल यात्रियों को सम्मान देना सीखना होगा, हमे साईकल चलाने वालों को आगे लाना होगा । हमे मेहनत से पैसे कमाने वालो की इज्जत करनी ही चाहिए। हमे पैदल चलने वाले व साईकल चलाने वाले को तवज्जो देनी चाहिए। वो लोग हमारे गौरव है। पर्यावरण की सुरक्षित रखना है श्रम को महत्व देना है तो ऐसे नागरिकों को महत्व देना ही होगा। मैं ज्यादातर पांच से दस किलोमीटर तक अगर जाना हो तो साईकल पर ही जाना बेहतरीन समझता हूँ ये सभी के मन मस्तिष्क में  रहना चाहिए।

जब मैं कई बार बाजार में जाता हूँ या 5- 7 किलोमीटर जाना हो तो मुझे साईकल पर चलते वक्त कोई इक्का दुक्का व्यक्ति ही साईकल चलाता हुआ मिलता है नही तो सभी युवा तो बाइक पर ही चलते है। मुझे ऐसा लगता है कि इसमें दो कारण हो सकते है, पहला तो लोग क्या कहेंगें ये मन मे चलना दूसरा आजकल लोगो मे और खास कर युवाओं में एनर्जी की भी कमी रहती है कुछ लोग है प्रोफेशनल जो साईकल पूरे गीयर में चलाते है परन्तु वो सिर्फ दिखाने के लिए तो जरूर है लेकिन वो कभी भी आम दैनिक कार्य करने के लिए साईकल का प्रयोग नही करते । इसलिए मैं सदैव यही कहता हूँ कि आदत या व्यवहार बदलने की जरूरत है जो साईकल हम व्यायाम करने के लिए चलाते है उस का रुख मोड़ना है और उसे आम दैनिक कार्यो को पूरा करने के लिए भी पूरा किया जा सकता है इसके पांच फायदे होंगे एक तो आप का व्यायाम हो जाएगा, दूसरा आपका जरूरी काम भी हो जाएगा तथा तीसरा हमारा पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा।

और चौथा सड़क पर भीड़ कम रहेगी। पांचवा फायदा ये होगा कि हमारे युवाओं के भीतर छुपी हुई हीनभावना बाहर निकल जायेगी ।इसी बात को तो हमे समझना है जिस साईकल को हम व्यायाम के लिए चलाने में गर्व महसूस करते है उसी साईकल को दैनिक कार्य करने के लिए चलाने में हम क्यों शर्म करते है।
जीवन को हमे बहुत सरल बनाने की जरूरत है और वो तभी बनेगा जब हम अपनी आदतों और व्यवहार में सहजता व सरलता लेकर आयेंगे।

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