आपातकाल का विरोध करने पर जेल में डाल दिया था एडवोकेट मुरलीधर कांडा को - Choptapress.com

आपातकाल का विरोध करने पर जेल में डाल दिया था एडवोकेट मुरलीधर कांडा को

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आपातकाल : आपातकाल का विरोध करने पर जेल में डाल दिया था सिरसा के एडवोकेट मुरलीधर कांडा को
सरकार ने रिहा करने के लिए रखी थी माफी मांगने की शर्त, पर कर दिया था साफ इंकार

 

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हरियाणा में सिरसा के स्व.मुरलीधर कांडा एडवोकेट ने भी सिरसा आरएसएस प्रमुख रहते हुए आपातकाल के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाया तो तत्कालीन सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर हिसार जेल में डाल दिया। इसके बाद  सरकार ने शर्त रखी कि अगर रिहा होना चाहते हो तो मॉफी मांगनी होगी। वीर पुरूष कहां मॉफी मांगते है और मुरलीधर ने साफ इंकार कर दिया।

बीमार भी हुए

स्व. मुरलीधर कांडा के जेल में रहते हुए उन्हें पीलिया हुआ, उपचार के लिए अस्पताल में दाखिल करवाए गए पर वे चिरनिंद्रा में लीन हो गए। वह आज भी लोगों के दिलों में राज करते है। आज ही के दिन आपातकाल की घोषणा हुई थी, उनका स्मरण करते हुए उनके मार्ग पर चलकर ही उन्हें सच्ची श्रद्धाजंलि दी जा सकती है।

लाहौर से वकालत की

आपको यह भी बता देें कि मुरलीधर कांडा राष्ट्रवाद और परोपकार की भावना सदा दिल में लेकर चलते थे। उन्होंने वर्ष 1926 में लाहौर से वकालत की पढ़ाई की और सिरसा आ गए। वर्ष 1925 में आरएसएस की स्थापना हो चुकी थी और आरएसएस की विचारधारा मुरलीधर कांडा को अपने वश में कर चुकी थी, राष्ट्रवाद और ङ्क्षहदुत्व की विचार धारा के साथ साथ  देश को अंगे्रजों से मुक्त करवाने के लिए आरएसएस की ओर से किए जा रहे संघर्घ में वे शामिल हो गए।

सिरसा को माना कर्मभूमि

बता दें कि उन्होंने सिरसा तहसील को अपनी कर्मभूमि बनाया और हजारों स्वयं सेवको को साथ लेकर गांव गांव घर घर जाकर राष्ट्रवाद की अलख जगाई। उनका एक ही सपना था कि युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना पैदा की जाए। इसके साथ उन्होंने गो सेवा का अभियान चलाया। पूरे जिले में एक संगठन खड़ा किया और गायों के संरक्षण के लिए हर प्रकार का संघर्ष किया। वर्ष 1948 में महात्मा गांधी की हत्या कर गई तब तत्कालील सरकार ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया और उनकी गिरफ्तारी शुरू कर दी। मुरलीधर कांडा उस समय आरएसएस सिरसा तहसील के प्रभारी थे। सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर गुडगांव जेल में डाल दिया।

कुछ ही समय में कर दी भोजन की व्यवस्था

जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई तो सिरसा की बागडोर मुरलीधर कांडा एडवोकेट को सौंप दी गई। वर्ष 1952 चुनाव हुआ तो संयुक्त पंजाब की डबवाली विधानसभा सीट से मुरलीधर कांडा को जनसंघ ने अपने उम्मीदवार के रूप में  चुनाव लडवाया, तब चुनाव चिन्ह दीपक हुआ करता था। वर्ष 1965 में युद्ध हुआ तो आरएसएस को सैनिकों के लिए सिरसा में भोजन का प्रबंध करने का निर्देश मिला, दो घंटे में दस हजार सैनिकों के भोजन की व्यवस्था को लेकर तत्कालीन नेताओं को पसीना आ गया पर मुरलीधर कांडा ने उन्हें कहा कि आप सभी घर चले जाओ चिंता की कोई बात नहीं है। उन्होंने अपने सेवको को बुलाया और हर घर से चार चार रोटी और सब्जी का प्रबंध करने का कहा। मुरलीधर कांडा के निर्देश पर चुटकी में दस हजार सैनिकों के भोजन का प्रबंध  हो गया। लोग उन्हें उन्हें ऐसे ही बाबू जी मुरलीधर कांडा नहीं कहते थे।

25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। आरएसएस ने इसके खिलाफ संघर्ष शुरू किया। सिरसा में मुरलीधर कांडा, महावीर प्रसाद रातुसरिया , वैद्य श्रीनिवास, प्रो.गणेशीलाल, श्याम लाल गोयल आदि स्वयं सेवको की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने जगह जगह पर दविश दी।

 

सिरसा में संघर्ष की कमान बाबू मुरलीधर कांडा जी के हाथों में थी। सरकार ने उन्हें प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार करते हुए हिसार जेल में डाल दिया। सरकार ने शर्त रखी कि अगर जेल से रिहा होना चाहते हो तो मॉफी नामा लिखकर देना होगा पर मुरलीधर कांडा जी ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया और जेल मे रहना ही उचित समझा। जेल में रहते हुए वे पीलिया का शिकार हो गए। पीलिया गंभीर होने पर उन्हें उपचार के लिए अस्पताल ले जाया गया पर वहां उनका निधन हो गया।

आरएसएस के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे बाबू मुरलीधर कांडा आजीवन संघ के सिद्धांतों पर ही चले और अपने  बच्चों को सेवा संस्कार और राष्ट्रवाद की शिक्षा देकर गए। उनका कद कितना ऊंचा था .

इसी बात से पता लगाया जा सकता है कि जब श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर डाक टिकट जारी हुआ तो उसका लोकापर्ण बाबू मुरलीधर कांडा  से करवाया गया था। आपातकाल में किए गए संघर्ष को देखते हुए सरकार ने उन्हें ताम्र पत्र प्रदान कर सम्मानित किया।

बाबू मुरलीधर कांडा अपने आप में एक संस्था थे, जनसेवा, गोसेवा, राष्ट्रसेवा सब कुछ उनमें समाया हुआ था। उन्होंने युवाओं को एक श्रेष्ठ नागरिक बनाने की प्रेरणा दी और इसी दिशा में काम किया। वे जानते थे कि युवा शक्ति का प्रयोग करके कैसे समाज और देश की दशा और दिशा को बदला जा सकता है। उनके संघर्ष को आज भी लोग याद करते हुए उन्हें नमन करते है।

 

 

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